माल्यवंत अति सचिव सयाना। तासु बचन सुनि अति सुख माना।।
तात अनुज तव नीति बिभूषन। सो उर धरहु जो कहत बिभीषन।।
रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ। दूरि न करहु इहाँ हइ कोऊ।।
माल्यवंत गृह गयउ बहोरी। कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी।।
सुमति कुमति सब कें उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं।।
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना।।
तव उर कुमति बसी बिपरीता। हित अनहित मानहु रिपु प्रीता।।
कालराति निसिचर कुल केरी। तेहि सीता पर प्रीति घनेरी।।
तात अनुज तव नीति बिभूषन। सो उर धरहु जो कहत बिभीषन।।
रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ। दूरि न करहु इहाँ हइ कोऊ।।
माल्यवंत गृह गयउ बहोरी। कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी।।
सुमति कुमति सब कें उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं।।
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना।।
तव उर कुमति बसी बिपरीता। हित अनहित मानहु रिपु प्रीता।।
कालराति निसिचर कुल केरी। तेहि सीता पर प्रीति घनेरी।।
Malyavant atti sachiv sayana tasu vachan suni atti such mana I
Tatt anuj tav neeti vibhushan so urr dharou ji kahat bibhishan I
Ripu utkarash kahat sath dou doori na karhu ehan hayaim kou I
Malavant grah gayuin bahori kahahi bibhishan puni kar jori I
Sumati kumati sab ke ur rahahi ved puran Nigam us kahayahi I
Jahan sumati tahan sampatti nan jahan kumati tahan vibat nidana I
Tav urr basi kumati bipreeta hit anhit manhahu arri preeta I
Kalrati nisichar kul keri tehi seeta par preeti ghaneri I
दो0-तात चरन गहि मागउँ राखहु मोर दुलार।
सीत देहु राम कहुँ अहित न होइ तुम्हार।। (40)
सीत देहु राम कहुँ अहित न होइ तुम्हार।। (40)
Tatt charan gahyi magiiyun mor doolar I
Seeta dehu ram kahu ahit na hoahyi tumhar II (40)
बुध पुरान श्रुति संमत बानी। कही बिभीषन नीति बखानी।।
सुनत दसानन उठा रिसाई। खल तोहि निकट मुत्यु अब आई।।
जिअसि सदा सठ मोर जिआवा। रिपु कर पच्छ मूढ़ तोहि भावा।।
कहसि न खल अस को जग माहीं। भुज बल जाहि जिता मैं नाही।।
मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीती। सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीती।।
अस कहि कीन्हेसि चरन प्रहारा। अनुज गहे पद बारहिं बारा।।
उमा संत कइ इहइ बड़ाई। मंद करत जो करइ भलाई।।
तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा। रामु भजें हित नाथ तुम्हारा।।
सचिव संग लै नभ पथ गयऊ। सबहि सुनाइ कहत अस भयऊ।।
सुनत दसानन उठा रिसाई। खल तोहि निकट मुत्यु अब आई।।
जिअसि सदा सठ मोर जिआवा। रिपु कर पच्छ मूढ़ तोहि भावा।।
कहसि न खल अस को जग माहीं। भुज बल जाहि जिता मैं नाही।।
मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीती। सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीती।।
अस कहि कीन्हेसि चरन प्रहारा। अनुज गहे पद बारहिं बारा।।
उमा संत कइ इहइ बड़ाई। मंद करत जो करइ भलाई।।
तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा। रामु भजें हित नाथ तुम्हारा।।
सचिव संग लै नभ पथ गयऊ। सबहि सुनाइ कहत अस भयऊ।।
Budh puran shuriti sammat bani kahi bibhishan neeti bakhani I
Sunat dasanan utha risayee khal Mrityu nikat tohi ab ayee I
Jiyasi sada sath mor jiyava ripu kar pachh moorh tohi Bhava I
Kahasi na sath us ko jag mahi bhuj bal jahi jita mein nahi I
Us kahi keenhesi charan parhara anuj gaye pad barahi bara I
Umma sant ki ehahi barhayee mand karat jo karhahi bhalayee I
Tum pitu sam bhalahahi mohi mara ram bhaje hit nath tumhara I
Sachiv sang le nabh path gayuin sabahi sunayi kahat us bhayuin I
दो0=रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि।
मै रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि।। (41)
मै रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि।। (41)
Ram satya sankalp parbhu sabha kalbas tor I
Mein Raghubar saran ab jaun dehu jani khor II (41)
सुन्दरकाण्ड के उपरोक्त दोहे से प्रेरणा लेनी चाहिए और हमें सदैव सुबुद्धि कार्यक्रम ही प्रयोग करना चाहिए।
ReplyDeleteOk
ReplyDelete