सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना। भरि आए जल राजिव नयना।।
बचन काँय मन मम गति जाही। सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही।।
कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई। जब तव सुमिरन भजन न होई।।
केतिक बात प्रभु जातुधान की। रिपुहि जीति आनिबी जानकी।।
सुनु कपि तोहि समान उपकारी। नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी।।
प्रति उपकार करौं का तोरा। सनमुख होइ न सकत मन मोरा।।
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं। देखेउँ करि बिचार मन माहीं।।
पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता। लोचन नीर पुलक अति गाता।।
बचन काँय मन मम गति जाही। सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही।।
कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई। जब तव सुमिरन भजन न होई।।
केतिक बात प्रभु जातुधान की। रिपुहि जीति आनिबी जानकी।।
सुनु कपि तोहि समान उपकारी। नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी।।
प्रति उपकार करौं का तोरा। सनमुख होइ न सकत मन मोरा।।
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं। देखेउँ करि बिचार मन माहीं।।
पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता। लोचन नीर पुलक अति गाता।।
Sun Seeta dukh Prbhu Sukh ayena Bhar aye dal Rajiv NainaI
Vachan Kaye man mam gatti jahi Sapnehu bujh vipatti ki taee I
Kah Hanumant Vipati Parbhu soee jab tav sumiran bhajan na hoee I
Ketik bat jatudhan kee Ripu jeeti anibi Jankki I
Sunu Kapi tohi saman upkari nahin koi sur nar muni tanu dharee I
Pratiupkar karun ka tora sanmukh hoee na sakat man mora I
Sunu sut tohi urin mein nahee dekhiun kari vichar nman maheeI
Puni puni chitav Surtrata Lochan neer pulak atti gata I
दो0-सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत।
चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत।।(32)
चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत।।(32)
Suni Parbhu vachan viloki mukh gatt harash Hanumant I
Charan pareyu premakul trahi trahi Bhgwant II(32)
बार बार प्रभु चहइ उठावा। प्रेम मगन तेहि उठब न भावा।।
प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा।।
सावधान मन करि पुनि संकर। लागे कहन कथा अति सुंदर।।
कपि उठाइ प्रभु हृदयँ लगावा। कर गहि परम निकट बैठावा।।
कहु कपि रावन पालित लंका। केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका।।
प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना। बोला बचन बिगत अभिमाना।।
साखामृग के बड़ि मनुसाई। साखा तें साखा पर जाई।।
नाघि सिंधु हाटकपुर जारा। निसिचर गन बिधि बिपिन उजारा।
सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई।।
प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा।।
सावधान मन करि पुनि संकर। लागे कहन कथा अति सुंदर।।
कपि उठाइ प्रभु हृदयँ लगावा। कर गहि परम निकट बैठावा।।
कहु कपि रावन पालित लंका। केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका।।
प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना। बोला बचन बिगत अभिमाना।।
साखामृग के बड़ि मनुसाई। साखा तें साखा पर जाई।।
नाघि सिंधु हाटकपुर जारा। निसिचर गन बिधि बिपिन उजारा।
सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई।।
Bar bar Parbhu chahain uthawa Prem magan tehi uthab na bhawa I
Parbhu kar pankaj kapi ke seesa sumari so dasa magan doreesa I
Savdhan man kar man puni Sankar Lage katha kahan atti sundar I
Kapi uthaee Parbhu hrydey lagava Kar gahi param nikat baithava I
Kahu kapi Ravan palit Lanka Kehi vidhi deheyu durg atti banka I
Parbhu parsann jana Hanumana Bola vachan vigat abhimana I
Sakhamrig ke barhi manusee Sakha te sakha charh dhaee I
Naghi Sindhu Hatakpur jara Nisichargan badhi vipin ujara I
So sab partap Raghuraee Nath na kachhu mory Parbhutaee I
दो0- ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकुल।
तब प्रभावँ बड़वानलहिं जारि सकइ खलु तूल।।(33)
तब प्रभावँ बड़वानलहिं जारि सकइ खलु तूल।।(33)
Ta kahu parbhu kachhu agam nahi Ja par tum anukool I
Tav parbhav Barhwanalahin Jaree sakahi khal tul II (33)
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