सुनहु सखा निज कहउँ सुभाऊ। जान भुसुंडि संभु गिरिजाऊ।।
जौं नर होइ चराचर द्रोही। आवे सभय सरन तकि मोही।।
तजि मद मोह कपट छल नाना। करउँ सद्य तेहि साधु समाना।।
जननी जनक बंधु सुत दारा। तनु धनु भवन सुह्रद परिवारा।।
सब कै ममता ताग बटोरी। मम पद मनहि बाँध बरि डोरी।।
समदरसी इच्छा कछु नाहीं। हरष सोक भय नहिं मन माहीं।।
अस सज्जन मम उर बस कैसें। लोभी हृदयँ बसइ धनु जैसें।।
तुम्ह सारिखे संत प्रिय मोरें। धरउँ देह नहिं आन निहोरें।।
जौं नर होइ चराचर द्रोही। आवे सभय सरन तकि मोही।।
तजि मद मोह कपट छल नाना। करउँ सद्य तेहि साधु समाना।।
जननी जनक बंधु सुत दारा। तनु धनु भवन सुह्रद परिवारा।।
सब कै ममता ताग बटोरी। मम पद मनहि बाँध बरि डोरी।।
समदरसी इच्छा कछु नाहीं। हरष सोक भय नहिं मन माहीं।।
अस सज्जन मम उर बस कैसें। लोभी हृदयँ बसइ धनु जैसें।।
तुम्ह सारिखे संत प्रिय मोरें। धरउँ देह नहिं आन निहोरें।।
Sunuhu Sakha nij kahun subhou Ja bhusandhi Sambhu Girijau I
Jo nar hohyin sachrachar drohii Sabhay saran taki awe mohin I
Taji mad moh kapat chhal nana Karun sadya tehi sadhu samanaI
Janani Janak Bandhu Sut Dara Tanu Dhanu Bhawan Suhrid PariwaraI
Sab ke mamta tag batori Mam pad manhi bandh bar doriI
Samdarsi Ichha kachhu nahi Harash shok bhay nahi man mahee I
Us sajjan mam Ur bass kiense Lobhi hridey basai dhanu jeinse I
Tum sarikhe Sant Priye more Dharun deh na ann nihore I
दो0- सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम।
ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम।।(48)
ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम।।(48)
Sagun Upasak Parhit nirat Neeti drirh nem I
Te nar pran sam mam jin ke dvij pad prem II (48)
सुनु लंकेस सकल गुन तोरें। तातें तुम्ह अतिसय प्रिय मोरें।।
राम बचन सुनि बानर जूथा। सकल कहहिं जय कृपा बरूथा।।
सुनत बिभीषनु प्रभु कै बानी। नहिं अघात श्रवनामृत जानी।।
पद अंबुज गहि बारहिं बारा। हृदयँ समात न प्रेमु अपारा।।
सुनहु देव सचराचर स्वामी। प्रनतपाल उर अंतरजामी।।
उर कछु प्रथम बासना रही। प्रभु पद प्रीति सरित सो बही।।
अब कृपाल निज भगति पावनी। देहु सदा सिव मन भावनी।।
एवमस्तु कहि प्रभु रनधीरा। मागा तुरत सिंधु कर नीरा।।
जदपि सखा तव इच्छा नाहीं। मोर दरसु अमोघ जग माहीं।।
अस कहि राम तिलक तेहि सारा। सुमन बृष्टि नभ भई अपारा।।
राम बचन सुनि बानर जूथा। सकल कहहिं जय कृपा बरूथा।।
सुनत बिभीषनु प्रभु कै बानी। नहिं अघात श्रवनामृत जानी।।
पद अंबुज गहि बारहिं बारा। हृदयँ समात न प्रेमु अपारा।।
सुनहु देव सचराचर स्वामी। प्रनतपाल उर अंतरजामी।।
उर कछु प्रथम बासना रही। प्रभु पद प्रीति सरित सो बही।।
अब कृपाल निज भगति पावनी। देहु सदा सिव मन भावनी।।
एवमस्तु कहि प्रभु रनधीरा। मागा तुरत सिंधु कर नीरा।।
जदपि सखा तव इच्छा नाहीं। मोर दरसु अमोघ जग माहीं।।
अस कहि राम तिलक तेहि सारा। सुमन बृष्टि नभ भई अपारा।।
Suno Lankes sakal gun tore Tate tum attisay priye more I
Ram vachan suni Banarjootha Sakal kahin Jia Kripa barootha I
Sunat Bibhishan Parbhu ki bane Nahi aghat sharvanamrit jani I
Pad Ambuj gahi barhibara Hridey samat na prem apara I
Suno Dev Schrachar Swami Paranatpal ur antarjami I
Ab Kripal nij Bhagti pawani Dehu sada Shiv man Bhavni I
Evamastu kahi parbhu Randheera Maga turat sindhu kar neera I
Jadpi sakha tav ichha nahi More darsu amogh jag mahi I
As kahi Ram tilak tehi sara Suman vrishti nabh bhayee apara I
दो0-रावन क्रोध अनल निज स्वास समीर प्रचंड।
जरत बिभीषनु राखेउ दीन्हेहु राजु अखंड।।49(क)
जरत बिभीषनु राखेउ दीन्हेहु राजु अखंड।।49(क)
Ravan krodh anal nij swas sameer parchand I
Jarat Bibhishan rakhiyun denihiyun raj akhand II (49 ka)
जो संपति सिव रावनहि दीन्हि दिएँ दस माथ।
सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्ह रघुनाथ।।49(ख)
सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्ह रघुनाथ।।49(ख)
Jo samapati Shiv Ravanahi deeni diye das math I
So sampadah Bibhashanahi sakuchi deeni Raghunath II (49kha)
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